श्री रामदत्तगुरु चरित्र.....Http://ramdattaguru.org
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श्री  गणेशदत्तगुरूभ्यो  नम  :
श्रीरामगुरू  चरित्र 
  ॥  अध्याय 10  वा ॥

॥  श्री  गणेशाय  नम:  ॥  श्री  सरस्वत्यै  नम:  ।  श्रीगुरूभ्यो  नम:  ।  जय  जय  श्री  दत्तात्रेया।  त्रयमुर्ति  अत्रितनया।  धन्य  जननी  अनुसुया।  नमन  साष्टांग  तव  चरणी॥  1  ॥  श्रीनृसिंहसरस्वती  श्रीपाद।  स्वयंभू  नांदती  आज।  सगुणरूपी  यतीराज।  ओळख  मानवा  पटेचिना॥  2  ॥  हा  नाही  दोष  मानवाचा।  आहे  महिमा  थोर  कलिचा।  पुण्यपावन  त्रयमुर्तीचा।  सहवास  गुप्तरूपे॥  3  ॥  पुढे  गोखले  इंजिनीयर।  बदलुन  गेले  परदेशी  दुर।  गुरूमाउली  निरंतर।  रक्षण  त्यांचे  करीतसे॥  4  ॥  तदनंतर  मे  महिन्यात।  एकोणवीसशे  सत्तावनात।  रामगुरू  आले  नातू  सदनात।  सोळा  वर्षे  वास्तव्य  तेथे  ॥5  ॥  आयुष्याची  दोन  तपे  सरता  ।  गृहस्थाश्रम  स्विकारण्याचा।  संदेश  झाला  रामराया।  विधीने  भाळीलिहीलेला॥6॥जन्मोजन्मीचे  ॠणानुबंध।  योगायोगे  जुळती  संबंध।  निमीत्तमात्र  जन  होत।  विधीसूत्र  अघटित  असे॥  7॥  विप्रारंभापासून।  जी  आदिशक्ती  प्रणवरूपिणी।  जगन्माता  भवानी।  जगचालकाची  अर्धांगिणी॥  8॥  धन्य  ती  पिता  जननी।  उदरी  अवतरली  भवानी।  अवतार  तिचा  कलियुगी।  सात  कुळे  उध्दारली॥9॥  मध्यप्रांती  छिंदवाडा  निवासी।  दामोदर  पंत  शिरपुरकराची  ।  सरला  नामे  कन्या  धाकुटी।  अवतरी  त्या  कुळी॥10॥  संदेश  झाला  रामराया।  गृहस्थाश्रम  स्विकाराया।  जगा  शिकवण  द्यावया।  प्रपंच  लटका  वदलासी॥  11॥  ही  आहे  जगा  शिकवण।  परमार्थ  साधण्या  कारण।  प्रपंची  राहुनी  सुखाने।जगदोध्दारकरावा॥12॥नागपूरनामेग्रामांत।औरंगाबादकरांचे  सदनात।  उभयतांच्या  भगिनी  नांदत।  कांता  दोन्ही  बंधुच्या॥  13॥  तो  होता  विवाह  योग।  कोणी  न  टाळू  शके  त्या  सहज।  भगिनी  वर  संशोधनाकारण।  दोघेही  पातले  त्या  सदनी॥  14  ॥  कन्या  झाली  असता  उपवर।  पिता  होती  चिंतातूर।  आज्ञा  करिती  पुत्राशी।  वर  शोधण्या  कन्येसी॥  15॥  ते  होते  विधीलिखित।  अज्ञ  जना  न  कळे  गुपित।  लहान  भगिनी  निमीत्त  ।  वर  शोधण्या  राम  सा॥  16॥  जगलौकीका  प्रमाणे।  जग  रहाटी  अनुसरणे।  वर  शोधण्याकारणे  ।  भगिनी  सदनी  पातले॥17॥  जगविधाता  अधिपती।  माया  त्याची  अघटित  किती।  मानव  प्राणी  मंदमति।  वर्णू  कशी  अज्ञ  मी॥  18॥  भारद्वाज  गोत्रोत्पवीस  राम।  कश्यप  गोत्रोत्पवीस  सरला  नाम।  विवाहयोग  आला  जुळून।  कार्य  निश्चिती  झाली  असे॥  19  ॥  करण्या  व्यवहार  सोयरीकीचा।  अडथळा  येई  धनमानाचा।  निर्णय  घेवून  कार्याचा।  कार्यस्थळ  योजिले॥  20॥  उभयपक्षास  योग्य  नगरी।  सिताबर्डी  नागपूरी।  आषाढ  शुध्द  नवमी  तिथी।  निश्चित  झाली  उभयपक्षी॥  21॥  आनंद  झाला  देवलोकी।  वरूण  राजाची  वाजंत्री।  धड  धडू  लागली  नभोदरी।  नाद  दुमदुमे  भुवरी॥  22॥  निसर्गरम्य  मनोरम  किती।  चपला  गगनी  नृत्य  करती।  चमचमके  भुवरती।  नभ  धडाडे  चौघडी॥23॥  न्हाऊ  घालण्या  वधूवरा।  नभ  वर्षती  जलधारा।  पूनीत  झाली  वसुंधरा।  जलस्पर्शे  अतीमोदे॥24॥  जो  स्वयेंचि  परब्रम्ह।  त्यासी  कोण  म्हणेल  सावधान।  आदिमाया  स्वयंपूर्ण।  अंकीत  असे  त्याचिया॥25॥  पृथ्वी  राजाचे  भाट।  गाऊ  लागले  मंगलगीत।  नभराज  वर्षती  अक्षता।  सीमा  नसे  त्या  आनंदा॥  26॥  कैसी  असे  विधीरचना।  याची  जाणीव  नसे  कवणा।  द्वैत  असे  ज्यांचिया  मना।  योग  नसे  त्याचा  मंगल  अक्षत  टाकण्या॥  27॥  वरात  आली  असे  घरा।  साक्षात  विठ्ठल  रूमिणी  जोडा  साजिरा।  वारकरी  निघाले  पंढरीला।  आषाढी  एकादशी  म्हणूनी॥  28॥  थाटात  केले  लक्ष्मीपूजन।  =ेवीले  भाग्यवती  नामभिधान।  सर्व  जगाची  भाग्यदाती  म्हणून।  र्शकरा  वाटली  मंडपी  ।  ॥29॥  आनंद  वर्तला  सदनी।  भाग्योदय  झाला  भक्तजनी।  एक  दत्तात्रेय  त्रिभुवनी  ।  भक्तांची  चिंता  वाहे  जननी॥  30॥  व:हाड  निघाले  येण्या  सदनी।  आनंद  झाला  त्रिभुवनी।  ऐका  श्रोते  नवल  घडले।  ईश्वरा  भक्तांचे  सांकडे  पडले॥  31॥  विठ्ठल  भक्ती  नातू  सदनी  ।  वंशोवंशी  नांदे  अवनी  ।  त्यांची  कामना  जननी।  दत्तरूप  पूरवितसे॥  32॥  सुशीला  नामे  नातू  सदनी।  नांदे  पतिव्रता  सगुणी।  प्रपंची  दक्ष  राहूनी  भुवनी।  परमार्थ  साधे  जीवनांत॥  33॥  प्रात:काळी  रम्य  समयी।  वृध्दजन  गाती  भूपाळी।  ईरा  प्रितीने  आळवी।  येवून  पोहचली  मंडळी  अशावेळी॥  34॥  पंचामृत  घालूनी  शुध्दभावी।  उभयतांचे  पाद  प्रक्षाळी।  तुकडा  पाणी  ओवाळी।  विठ्ठल-रूमिणी  म्हणुनी॥35॥  कृतार्थ  वाटले  जीवनी।  सुशीला  संतोषली  मनी।  आशिर्वाद  त्याक्षणी।  भरभराट  झाली  नातूसदनी॥  36॥  गुरूकृपेचा  महिमा  अगाध।  न  लागे  मानवा  थांग।  अतुल्य  अवनी  अवतार  हा  ।  वर्णन  कैसे  करावे॥  37॥  सहचारिणी  येता  सदनी।  विधीसोहळा  उरकोनी।  गणगोत  परतले  आपापल्या  सदनी।  गृहस्थाश्रमी  गुरूमाउली॥  38॥  नांदती  आनंदे  उभयता।  प्रथमची  गुरूवार  येता।  आज्ञा  करिती  भार्येशी।  भयचकीत  न  व्हावे  चित्ताशी॥  39॥  येती  नृसिंह  सरस्वती।  प्रिय  भक्ता  दर्शन  देती।  जनकल्याण  अवतार  घेती।  गुप्त  कलियुगी  अवतार  हा॥  40॥  शांतचित्ते  बसावे  सविीसध।  आशिर्वाद  देती  सद्गुरूनाथ।  जगदोध्दारा  कारणे।  धन्य  धन्य  त्रयमुर्ति॥  41॥  यापुढील  कथा  सुरस।  कैसे  उपदेशिती  भक्तास।  स्वयेचि  स्वंयभू  सद्गुरूनाथ।  वदतील  शुभवचनी॥  42॥  इति  श्रीरामगुरूचरित्र।  परिसा  रसाळ  इक्षुदंड।  विनवी  दासी  अखंड।  दशमो।ध्याय  गोड  हा॥43॥ 

॥श्रीगुरूदत्तात्रेयार्पणमस्तु  ॥ 
॥अ  व  धू  त  चिं  त  न  श्री  गु  रू  दे  व  द  त्त  ॥ 

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