श्री रामदत्तगुरु चरित्र.....Http://ramdattaguru.org
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श्री  गणेशदत्तगुरूभ्यो  नम  :
श्रीरामगुरू  चरित्र 
  ॥  अध्याय 11  वा ॥

॥  श्री  गणेशाय  नम:॥  श्री  सरस्वत्यै  नम:।  श्रीगुरूभ्यो  नम:।  सिध्दिविनायका  गणराया।  सर्व  जगावरी  तुझी  माया।  विद्याबुध्दि  देउनिया।  सिध्दीस  न्यावे  ग्रंथाला॥1  ॥  तुचि  मोरया  भयहर्ता।  तुचि  सदया  विघ्नहर्ता।  नम्रपणे  =ेविते  माथा।  चरणावरी  भालचंद्रा॥2॥  सर्वसामान्यांप्रमाणे।  जगी  गुप्त  राहणे  ।  प्रपंच  नियमा  पाळणे।  ब्रीद  हेच  कलियुगी॥  3  ॥  त्रिमुर्ति  त्रिगुणातीत।  अशय  काय  जगात।  रामराया  समवेत।  भाग्यवती  नांदतसे॥  4  ॥  प्रथमवर्षी  उन्हाळयात।  उभयता  जाती  छिंदवाडयास।  घडले  नवल  अघटित।  अगाध  लीला  माउलीची॥  5॥  भक्तेच्छा  पुरविण्याप्रति।  सदैव  जागृत  गुरू  त्रयमूर्ति।  त्याचे  वर्णन  मी  मंदमति  ।  कैसे  करावे  गुरूनाथा॥  6॥  दामले  नामे  गजानन  भक्त।  मनी  त्यांच्या  होता  हेत।  कन्येस  आशिर्वाद  देण्यास।  दत्तात्रयांनी  स्वये  यावे॥  7॥  गुप्त  स्वरूपी  कार्य  करिता।  जो  स्वयेचि  विधाता।  याचि  पटविण्या  साक्ष  जगता।  किती  एक  चमत्कार  जगी  झाले॥  8॥  गुरू  असता  छिंदवाडी।  पत्रिका  गेली  अचलपूरी।  कार्य  होते  अमरपूरी(अमरावती)।  परी  कार्यास  येती  सद्गुरूनाथ॥  9॥  जयजयाजी  हो  सद्गुरूनाथा।  कलियुगी  भक्तत्राता।  तुजविण  ना  समर्थ  कोणी।  करूणा  येऊ  दे  अनंता॥10॥  अगाध  तुझी  करणी  असे।  शरणी  त्रिवार  येवुनी  प्रार्थिते।  तव  चरणी  नम्र  होते।  रामचंद्रा  गुरूराया  ॥  11  ॥  रामचंद्राची  ज्येष्=  भगिनी।  नांदत  होती  गावली  सदनी।  भेट  भगिनीची  घ्यावयालागुनी।  मुक्कामा  पोहोचले  अचलपूरी  ॥  12  ॥  लग्नपत्रिका  देखता।  स्नेह  उपजला  गुरूंच्या  चित्ता।  कार्यास  निघाले  उभयता।  लग्नमंडपी  पोहोचले  ॥  13  ॥  किती  अगाध  भक्तिचा  महिमा।  योग्यतेवाचुनी  कळेना।  अनुभव  येण्या  मानवा।  पूर्वपुण्याई  पाहिजे  ॥  14  ॥  भाग्य  किती  थोर  अमरावतीकरांचे।  दर्शन  घडले  गुरूदत्तात्रेयांचे।  दामल्यांचे  निमीत्त  साचे।  दर्शन  झाले  सृजना  ॥  15  ॥  हर्ष  झाला  दामल्यांचे  मनी।  धन्य  झालो  म्हणे  जीवनी।  गुरूभक्ति  फळा  आली।  अखंड  चिंतन  सद्गुरूंचे  ॥  16  ॥  रूपे  दिसती  भिवीस  भिवीस।  स्वरूप  शक्ति  एकचि  जाण।  निरनिराळया  नामेकरून।  जगदोध्दार  कलियुगी  ॥  17  ॥  कैसी  आहे  मानव  निती  ।  पूर्वसुकृत  कर्मगती।  भोग  मानव  भोगीती।  होती  यातना  गहन  अंती  ॥  18  ॥  मोहमाया  सुटेना।  भय  चित्ता  वाटेना।  भ्रांत  असे  मानवा।  घोर  पापकर्माची  ॥  19  ॥  श्रेष्=  आहे  कलिमहिमा।  ह्ष्ट  बुध्दी  दूर्वासना।  वृत्ती  वाढली  पापकर्मा।  वाममार्गी  जातात  ॥  20  ॥  नाही  मानवा  भय  चित्ती।  भूतबाधा  भानामती।  पिडित  ग्रस्त  लोकांप्रती।  मुक्ती  देतील  त्रयमुर्ति  ॥21  ॥  निमित्त  होते  दामल्यांचे।  भाग्य  उदेले  अमरावतीवासियांचे।  पूर्वपूण्य  भक्तांचे।  गुरूवार  आला  ते  दिनी  ॥  22  ॥  किती  एक  असती  श्रध्दावंत।  भोळे  भाविक  जगांत।  किती  एक  कुटाळ  टवाळी  करीत।  कितीएक  असती  रोगग्रस्त  ॥  23  ॥  कितीएक  कर्मभोग  भोगिती।  दुष्कृत्ये  ना  सोडिती।  नरजन्मा  येऊनी  जगती।  वाया  असे  जन्म  त्यांचा  ॥24  ॥  अबला  असे  एक  कुटिला।  चेटूक  करितसे  सर्वदा।  नरजन्मा  येऊनी  दुष्कृत्या।  नीच  कर्म  करीतसे  ॥25  ॥  तरूण  दांपत्य  दिसता  नयनी।  गरोदर  स्त्रिया  सगुणी।  ह्ष्टीस  पडता  दिनरजनी।  गर्भपतनाचे  कृत्य  करी  ॥  26  ॥  बालहत्येचे  पातक।  कित्येक  स्त्रियांचे  तळतळाट।  भेडसाविती  तियेस।  घोर  पाप  आले  भरत  ॥  27  ॥  चैन  पडे  ना  तियेप्रत।  नयनी  दिसती  स्त्रीचित्र।  गर्भपात  झालेल्या  तरूणींचे।  व्याकुळ  झाली  भामिनी  ॥  28  ॥  अवीसपाणी  रूचेना।  त्रस्त  झाली  शुभांगना।  मुक्त  होण्या  आली  गुरूदर्शना।  परी  न  सोडी  दुर्वासना  ॥  29  ॥  कर्मभोग  आडवा  आला।  दुर्विचार  उफाळला।  आणिले  सर्व  साहित्या।  मु=  मारण्या  गुरूलागी  ॥  30  ॥  जो  त्रिकालज्ञ  परमेर।  जाणिले  भामिनी  अंतर।  जाणुनी  अंतरीचा  भाव।  प्रश्न  तियेसी  केला  असे  ॥  31  ॥  काय  असे  जवळी  तुझ्या।  =ेवसमोर  काढूनी  माझ्या।  येथे  न  लागे  पाड  त्याचा।  ह्ष्टीसमोर  राहू  नको  ॥  32  ॥  भक्तवत्सल  सद्गुरूनाथ।  कलियुगी  गुप्त  रहात।  जगदोध्दार  करण्याप्रत।  प्रकटती  मानवरूपे  ॥  33  ॥  गुरूभक्तीचा  महिमा  थोर।  कैसी  वर्णु  मी  पामर।  गुरूकृपा  वंशपारंपार।  मोक्षगति  कलियुगी  ॥  34  ॥  उध्दार  करण्या  भतांचा।  अवतार  दत्तात्रयांचा।  मानवजन्मी  भूवरी  साचा।  ओळखण्या  योग्यता  पाहिजे  ॥  35  ॥  अत्रितनया  दत्तात्रया।  एकमुखी  गुरू  सदया।  शरण  कन्या  रामराया।  उध्दरी  आता  मायबापा  ॥  36  ॥  शरण  त्रिवार  त्रयमूर्ति  ।  तू  विश्वाचा  अधिपती।  काय  अशय  तूज  जगती।  जीवनमुक्त  करी  आता  ॥  37  ॥  नरसिंह  सरस्वती  येती।  मानवरूपे  भूवरती।  अजूनही  अखंड  भ्रमंती।  भक्तरक्षणा  चराचरी  ॥  38  ॥  अज्ञानी  मानव  प्राण्या।  भवसागरी  तरण्या।  सद्गुरूचरण  प्राप्त  होण्या।  पूर्वसुकृत  पाहिजे  ॥  39  ॥  अज्ञानी  मानव  प्राणी।  प्रपंच  मायेत  जातो  बुडुनी।  तरूनि  जाण्या  तयातूनी।  गुरूचरण  नौका  हो  ॥  40  ॥  इति  श्रीरामगुरूचरित्र।  परिसा  रसाळ  इक्षुदंड।  विनवी  दास  अखंड।  एकादशो।  ध्याय  गोड  हा  ॥41  ॥ 

॥श्रीगुरूदत्तात्रेयार्पणमस्तु  ॥ 
॥अ  व  धू  त  चिं  त  न  श्री  गु  रू  दे  व  द  त्त  ॥ 

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