श्री रामदत्तगुरु चरित्र.....Http://ramdattaguru.org
मुख्य पृष्ट श्री रामदत्तगुरु चरित्र आरती नमन अष्टक अनुभव जे जाणति तीर्थयात्रा व अनुभूति कर्दळिबन चित्र दालन पत्र संवाद
Untitled Document

श्री  गणेशदत्तगुरूभ्यो  नम  :
श्रीरामगुरू  चरित्र 
  ॥  अध्याय 18  वा ॥

॥श्रीगणेशाय  नम  :॥  श्रीसरस्वत्यै  नम  :॥श्रीगुरूभ्यो  नम  :॥गौरीसुता  गजानना।  करीते  तुम्हा  प्रार्थना।  स्फुर्ति  देई  गंथ  लिहिण्या।  हीच  तुम्हा  याचना॥1॥अनन्यशरण  मी  गुरूचरणा।  अखंड  गुरूसेवा  जीवना।  हेच  ध्येय  अंतरी  जाणा।  त्रिगुणात्मक  दयाघना॥2॥श्रीरामचंद्रा  जगपालका।  विपति  अलौकीका।  तव  अवतार  कार्याची  महति  दे  खा।  वर्णु  कैसी  सुरेखा  ॥3॥आजवरी  ऐकीले  पुराणी।  गुरूदत्तात्रय  सगुणखाणी।  पिशास  मुक्ति  देवूनी।  रक्षण  करिती  मानवा॥4॥श्रीरामचंद्रगुरूनी  आजवरी।  असंख्य  अगणित  कितीतरी।  जीव  रक्षिले  भूवरी।  भूतपिशा  बाधेतून॥5॥याचा  परिसा  वृत्तान्त।  श्रोते  तुम्ही  सावचित्त।  कैसे  रक्षिले  गुरूनाथे।  अतृप्त  आत्म्यास  मुत  करिती॥6॥अतृप्त  आत्मा  मानवासी।  कैसा  छळितो  निशिदिनी।  याचे  प्रत्यंतर  गुरूभगिनीशी।  प्रत्यक्ष  आले  असे  हो॥7॥प्रथम  आत्मा  गृहिणीस।  न  खाउ  देई  अवीसास।  तदनंतर  अघोरी  ताडणास।  व्रूच्रकृत्य  सुरू  केले॥8॥न  दिसे  पिशा  कवणास।  गुप्तपणे  छळीत  असे  अबलेस।  घरातील  आप्तजन।  न  मानिती  अबलावचन॥9॥शेवटी  जर्जर  करूनी  प्राणा।  असह्या  केल्या  यातना।  शेवटी  मृत्यु  येउनी  जाणा।  पिशा  योनी  प्राप्त  तिसी॥10॥हिंडली  बहुत  दिन।  पिशा  योनीत  राहून।  भोग  भोगिले  आत्म्याने।  कर्मगती  प्रमाणे॥11॥शेवटी  एकेदिनी।  काय  घडली  अघटित  करणी।  स्मृती  आत्म्यास  होउनी।  रामसदनी  पातली॥12॥माध्यान्ह  निशा  समय  घोर।  ठेठवी  बंधु  सदनीचे  दार।  त्रिकालज्ञ  राम  थोर।  दार  उघडी  प्रितीने॥13॥काय  वदली  बंधुस  भगिनी।  तू  कितीएक  आत्म्या  मुक्ति  देउनी।  कृतार्थ  त्यास  केले  जीवनी।  मजसी  का  न  मुक्ति  देशी  बरे  ?॥14॥  दिनदयाळू  सद्गुरूनाथ।  गुप्तरूप  जे  राम  सत्य।  द्रव  उपजला  चित्तात।  मुक्तीकाळ  जवळ  तिचा॥15॥दार  उघडिले  रामचंद्रे।  भगिनीस  देखिले  नेत्रे।  तो  बंधुभगिनी  संवाद।  कोणा  न  कळीला  तो  वाद॥16॥श्रवण  करूनी  माता  सहज।  पुसतसे  रामचंद्रास।  कोणासवे  बोलसी  रामा।  कोण  आले  तुझिया  दर्शना॥17॥न  दिसे  कोणी  माझे  नयना।  काय  असे  खेळ  तुझा।  घेवुनी  दत्तात्रयदर्शन।  निघाली  आज्ञा  घेवुन॥18॥  वायुवेगे  गुप्त  झाली।मुक्ती  तिये  मिळाली।  तो  गुप्त  संवादप्रसंग।  कोण  न  कळला  थांग॥19॥  भगिनीस  मुक्ति  सत्वर।रामकृपा  अगाध  थोर।  वासना  भागण्या  निरंतर।  पुत्रा  पोटी  जन्मली  साचार  ॥20॥  ऐसा  गुरूकृपेचा  महिमा  थोर।  कैसे  वर्णावे  मानव  पामर।  जीवन  होण्या  सुखी  निरंतर।  उपाय  रामचंद्रे  कथियेले॥21  ॥श्रध्दाभाव  =ेवुनी  निरंतरी।  पाळावे  नियम  खरोखरी।  दत्तवचन  भूवरी।  असत्य  कधी  न  झाले  सृजन  हो॥22॥माझे  गुरू  रामचंद्र।  गुप्तरूपे  भूवर।  दत्तअवतार  निरंतर।  वचनी  श्रध्दा  असावी॥23॥  आजपर्यंत  अवनीवर।  वचन  असत्य  न  झाले  थोर।  अगणित  भक्त  रक्षिले  सार।  म्हणूनी  कथिले  सत्यसत्य  ॥24॥एकनिष्=  असावे  भक्त।  त्या  उणे  काय  अगणित।  जीवनीशांतीसुख  नित्य।  गुरूवचनी  स्थिर  होता॥  25॥भूतपिशाश्  बाधेपासुनी।  स्वसंरक्षणार्थ  जीवनी।  ध्यानी  =ेवा  गुरूवचन।  कल्याण  जिवनी  होईल॥26॥  बाहेरूनी  हिंडुनी  येता।  हातपाय  धुवोनी  अाचमन  करी  त्वरीता।  तदनंतर  गृहप्रवेश  करता।  भय  नसे  बाधेचे॥27॥हातपाय  धुतल्या  विणा।  पाकगृही  प्रवेश  न  करावा  जाणा।  पवित्र  अवीस  दुषित  होण्या।  ते  एक  कारण  असे॥28॥होता  होई  संध्यासमयी।  न  हिंडावे  अन्यस्थळी।  केस  मोकळे  ते  वेळी।  न  सोडावे  अबलेने॥29॥दहीभात  भक्षण  करूनी।  न  हिंडावे  स्मशानभूमी।  त्याप्रमाणे  स्मशानी।  तळीव  पदार्थ  भक्षण  करूनी॥30॥न  हिंडावे  मानवाने।  अमावस्या  पौणिमा  पाळणे।  ह्या  दिनी  पिशाजन।  अखंड  करितीभूमीभ्रमण॥31॥तैसे  काही  वृक्षछाया।  आवडी  पिशाास  रहावया।  म्हणुनी  त्या  वृक्षाचिया।  छायेतुनी  वावरू  नये॥32॥महाळुंग़  पिंपळ  चिंच  बोर।  वृक्ष  असती  जगीघोर।  ध्यानी  =ेवा  निरंतर।  भयानक  वृक्ष  हे॥33॥रामवचनी  होवुनी  स्थिर।  तरूनी  जा  हा  भवसागर।  भाग्य  तुझे  प्राण्या  थोर।  गुरू  सहवास  नित्य  घडे॥34  ॥आपण  राहण्याचे  स्थळ।  माहितीतले  असावे  निर्मळ।  योग्य  नसे  आपणा  राहण्या।  अतृप्त  प्राण्याचे  मृत्यचे  स्थळ  ॥35॥माहिती  असता  असे  काही।  तृप्त  करावे  आत्म्यास  पाही।आवड  त्या  वस्तू  प्रथम  त्यास  देई।  ग्रहण  आपण  नंतर  करी॥36॥ऐसे  न  केल्यास  आपण।उपसर्ग  होतो  मानवा  जाण।  अतृप्त  आत्मा  मानवा  छळितो  ।  त्याचे  तृप्ती  कारण  ॥37॥  म्हणूनी  मानवाने  वरील  नियम।  पालन  करावे  श्रध्देने।  पिशा  बाधेपासुनी।  रक्षण  करिती  रामराया॥  38॥म्हणुनी  मानवाने  पहा।  जीवनी  सावध  नित्य  रहा।  काळवेळ  नित्य  पहा।  संसार  जगी  करतांना॥39॥  आता  श्रोते  सावचित्त।  पुढील  अध्यायाचा  वृत्तान्त।औदुंबर  वृक्षसेवेचे  माहात्म्य।  श्रवण  करा  गुरूमुखे॥40॥इति  श्रीरामगुरूचरित्र।  परिसा  रसाळ  इक्षुदंड।  विनवी  दासी  अखंड।  अष्टादशोध्याय  गोड  हा॥41॥

॥श्रीगुरूदत्तात्रेयार्पणमस्तु  ॥ 
॥अ  व  धू  त  चिं  त  न  श्री  गु  रू  दे  व  द  त्त  ॥ 

मागील पान           पुढील पान

 

श्री रामदत्तगुरु चरित्र.....Http://ramdattaguru.org