श्री रामदत्तगुरु चरित्र.....Http://ramdattaguru.org
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श्री  गणेशदत्तगुरूभ्यो  नम  :
श्रीरामगुरू  चरित्र 
  ॥  अध्याय  4  था  ॥

॥  श्री  गणेशाय  नम  :॥  श्रीसरस्वत्यैं  नम:  ।  श्री  गुरूभ्यो  नम  :।  जय  जय  मंगल  मोरेरा  ।  भाळी  शेंदूर  कस्तुरी  टिळा  ।  दुर्वांकूर  शोभे  शिरी  ॥1  ॥  मोदक  तुजसी  नैंवेद्यास  ।  प्रसवीस  होतोसी  भक्तांस  ।  विद्यासागरा  आम्हांस  ।  प्रसवीस  होई  विनायक  ॥  2  ॥  कार्यारंभी  तुझे  पुजन  ।  संकट  काळी  तुझेचि  स्तवन  ।  विघ्नहर्ता  म्हणुन  ।  जगी  ख्याती  तुझी  असे  ॥  3  ॥  धाव  पाव  गा  आम्हासं  ।  नको  निष्=ुर  होऊस  ।  अंत  उगा  का  बघतोस  ।  स्फूर्ति  देई  गुरूस्तवना  ॥  4  ॥  साधु  संत  सत्संगतीचा  ।  नाम  गजर  हरीकिर्तनाचा  ।  कूळकर्णी  सदनी  सोहळा  ।  नित्यनेमे  होत  असे  ॥  5  ॥  त्याच  पूर्वपुण्येकरूनी  नारायणरावांचे  सदनी  ।  शामवर्ण  कमलनयनी  ।  त्रयमूर्ति  अवतरले  ॥  6  ॥  ज्येष्ट  अपत्य  दत्तात्रय  नामी  ।  ब्रम्हीभूत  झाले  बालपणी  ।  श्रीधर,मुज्ञाुंच्द,  रामचंद्र  सदनी  ।  बाळे  वाढली  गुरूकृपे  ॥7  ॥  कैसा  अवतार  त्रयमुर्तिचा  ।  अवनीवरी  झाला  साचा  ।  ह्याचा  इतिहास  मधूर  वाचा  ।  ऐका  सृजन  श्रोते  हो  ॥  8  ॥  कलिचा  आहे  अगाध  महीमा  ।  भूमीभार  पापगणना  ।  ईश्वरा  साकडे  पडे  ।  विष्णुसी  अवतार  घेणे  पडे  ॥  9  ॥  विष्णुअवतार  आजवरी  ।  कितीएक  झाले  भूमीवरी  ।  भक्त  उध्दरण्या  गुरूमाऊली  ।  गुप्त  अवतार  घेतसे  ॥  10  ॥  म्हण  मराठठ्ठ  भाषेत  ।  एक  आहे  जगी  ख्यात  ।  जैंसा  राजा  तैंसी  प्रजा  ।  राज्य  कलीचे  अवनीवर  ॥  11  ॥  पापवासना  दुराचारी  ।  मानवा  गोडी  अत्याचारी  ।  अहंकारे  बुडती  भवसागरी  ।  धर्मक्षय  होतसे  ॥  12  ॥  उध्दार  करण्या  भक्तांचा  ।  गुप्त  अवतार  त्रयमुर्तीचा  ।  धर्म  प्रजापालनार्थ  साचा  ।  गुप्त  विष्णुरूप  जगी  ॥  13  ॥  नरसिंह  सरस्वती  निघती  शैल  गमनास  ।  प्रियभक्ता  शोक  सत्य  ।  कैसे  आम्ही  राहू  जगांत  ।  गुरूमाये  तुजवांचून  ॥  14  ॥  गुरूमुर्ति  वदती  भक्तास  ।  नका  रे  शोक  करू  सत्य  ।  यापुढे  आम्ही  कलियुगात  ।  भक्तांसवे  गुप्त  असु  ॥  15  ॥  अखंड  भ्रमण  भूमीवरी  ।  भक्तसंरक्षणा  सत्वरी  ।  राहू  आम्ही  निरंतरी  ।  नरदेही  तुम्हा  सवे  ॥  16  ॥  ती  वार्ता  ऐकता  ।  आनंद  झाला  भक्तलोका  ।  ऐसे  संतोषविले  निजभक्ता  ।  शांत  चित्ता  वाटले  ॥  17  ॥  वरील  वचनाची  पूर्तताकरण्यास  ।  राम  जन्मा  आला  ।  कैसा  सोहळा  वसुंधरेचा  ।  ऐका  भावे  सृजन  हो  ॥  18  ॥  लता  वेली  बहरल्या  सत्य  ।  वसुधा  झाली  मुदीत  ।  शरद  आला  स्वागतास  ।  विष्णुअवतार  म्हणुनी  ॥  19  ॥  शरद  चांदणे  टवटवले  ।  नभी  तारांगण  उजळले  ।  ऐसे  नभोमंडप  सजले  ।  देवलोकी  दिवाळी  ॥20  ॥  जाईजूई  शेवंती  ।  पारीजात  चाफेकळी  ।  गुलाब  कमळे  नानापरी  ।  पृथ्वीवरी  गुरूपूजना  ॥  21  ॥  सरीता  नद्या  प्रवाहीत  ।  वायु  लहरी  मंद  सुगंधीत  ।  तटाके  सरोवरे  अतिनिर्मळ  ।  न्हाऊ  घालण्या  बाळास  ॥  22  ॥  कार्तिकी  पौर्णिमा  सोमवारी  ।  शिव  आराधना  प्रदोषकाळी  ।  बिल्वदळे  पूजिती  चंद्रमौळी  ।  त्रिपूर  उजळला  घरोघरी  ॥  23  ॥  ऐसा  रामदीप  उजळला  ।  निशाअंध र् कार  लोपला  ।  ऐसे  भुमंडळ  उजळले  ।  सूरगण  हर्षले  अंतरी  ॥24  ॥  पूर्वपश्चिम  औक्षवाणा  ।  ओवाळण्या  योगी  बाळा  ।  भाळी  लावण्या  ज्ञाुंच्कुमटिळा  ।  रक्तवर्ण  नभी  भरला  ॥25  ॥  उधळला  गुलाल  नभोमंडळी  ।  लाली  लाल  दिशा  दाही  ।  ऐशा  सुरम्य  सायंकाळी  ।  जन्म  होईल  त्रयमुर्तीचा  ॥  26  ॥  रजनीकांत  उगवता  ।  रवि  अस्तासी  जाता  ।  वाटे  उभयतांच्या  चित्ता  ।  राम  जन्म  धावू  आता  ॥27  ॥  गाई  वासरे  घरा  आली  ।  शांत  सुरम्य  शुभ  वेळी  ।  रामचंद्र  मुर्ति  सावळी  ।  जन्मा  आली  भुवरी  ॥  28  ॥  पवित्र  देह  सद्गुरूंचा  ।  स्पर्श  नाही  झाला  दाईचा  ।  धरणीमातेने  अवधूतांचा  ।  स्वीकार  केला  शुभहस्ते  ॥  29  ॥  घरात  नव्हती  तयारी  ।  अकल्पित  जन्मली  गुरूमाऊली  ।  धावाधाव  होई  सगळी  ।  हर्ष  सदनी  वर्तला  ॥  30  ॥  शके  1854  सी  ।  रोहिणी  नक्षत्र  प्रथम  चरणी  ।  बाळ  जन्मले  त्रयोदशगुणी  ।  भारद्वाज  गोत्रोत्पवीस  ॥  31  ॥  जन्मगांव  ओंकारदेव  ।  वृषभ  राशी  सायंकाळ  ।  मंगलघटीचा  सहाचा  समय  ।  शुभवेळ  जन्माची  ॥  32  ॥  14  नोव्हेंबर  तारीख  ।  साल  होते  1932  ।  जगदोध्दार  करण्यास  ।  सद्गुरू  अवतरले  नरजन्मी  ॥  33  ॥  न्हाऊ  घालण्या  बाळास  ।  गंगा  आली  दर्शनास  ।  भैरवमंदीरी  प्रगटली  ।  परंतु  ओळख  कोणा  न  पटली  ॥  34  ॥  अखंड  करी  बाळ  रूदन  ।  चिंताक्रांत  अवघे  सदन  ।  माता  वदे  दीनवदन  ।  शकुन  कोणी  बघती  ॥35  ॥  विभुती  अंगारा  लाविती  ।  स्मरण  झाले  मातेप्रती  ।  रामचंद्र  काका  आले  जन्मासी  ।  अपुर्ण  कार्य  करण्यासी  ॥  36  ॥  नवस  वदली  माता  ।  रामचंद्र  नांव  =ेऊ  आता  ।  उघडी  नयन  स्नेहाळा  ।  दुध  घ्यावे  वदनी  बाळा  ॥  37  ॥  ओळख  पटता  मातेस  ।  रूदन  थांबले  अकस्मात  ।  योग  समाधीतुन  जागृत  ।  नयन  उघडले  बाळाने  ॥  38  ॥  यापुढील  अध्यायी  ।  बाळलीला  गुरूआई  ।  वदतील  अतिहर्षी  ।  सावचित्त  होऊनी  ऐका  हो  ॥39  ॥  इति  श्री  रामगुरू  चरित्रे  ।  रामचंद्र  जन्माख्याने  ।  चतूर्थोध्याय:समाप्त:

॥श्रीगुरूदत्तात्रेयार्पणमस्तु  ॥ 
॥अ  व  धू  त  चिं  त  न  श्री  गु  रू  दे  व  द  त्त  ॥ 

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