श्री रामदत्तगुरु चरित्र.....Http://ramdattaguru.org
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श्री  गणेशदत्तगुरूभ्यो  नम  :
श्रीरामगुरू  चरित्र 
  ॥  अध्याय 40  वा ॥

।  श्री  गणेशाय  नम:  ।  श्रीसरस्वत्यै  नम:  ।  श्रीगुरूभ्यो  नम:  ।  जय  जयाजी  मंगळाधीशा  ।  आद्यगुरू  गणेशा  ।  पुरविण्याभक्तमनिषा  ।  अवतार  तुझा  भूवर  ॥1॥  विघ्नांतका  विघ्ननाशका  ।  सिध्दीविनायका  गणेशा  ।  मूळपिठधिपती  विश्वेशा।  आद्यगुरू  गणेशा  ॥2॥  तुझी  लीला  अपार  ।  तुझी  माया  अपरंपरा  ।  तू  दयेचा  सागर  ।  कृपासिंधू  दयाळा  ॥3॥आदिमाया  तुझी  शक्ति  ।  रिध्दिसिध्दी  तुझ्या  दासी  ।  चरणसेवा  इच्छिती  ।  नित्य  निरंतर  नि:स्वार्थ  ॥4॥  सकळरूप  सर्वेश्वरा  ।जगद्वंद्या  गुरूवर्या  ।  तुझी  थोर  किमया  ।  मानवे  कैसी  जाणावी  ॥5॥  हा  देह  अज्ञान  लेकरू  ।  तुम्ही  ज्ञानाचासागरू  ।  जगद्गुरू  मायबापा  ।  साकार  तुम्ही  सर्वेश्वरा  ॥6॥  अनंत  करावया  लीला  ।  पहावया  भक्तसोहळा  ।  अवनीवरीअवतरला  ।  त्रयमुर्ति  योगीराणा  ॥7॥  भक्तिमार्गाची  खूण  ।  व्हावे  लहानाहुनी  लहान  ।  लीन  करूनी  मन  ।  गुरूचरणीस्थिर  व्हावे  ॥8॥  गुरूचरणीची  धूळ  ।  तेचि  भक्ता  गंगाजळ  ।  उजळील  देह  सोज्वळ  ।  स्वानंद  सुख  देईल  ॥9॥ाक्तीमार्गाचा  माळा  ांतरी  ाटता  नेहाळा  ाांभाळी  ाू  ाृपाळा  ात्यानंदित  ााव  ाो  ।10॥  ागत्वंद्य  ाो  ाद्गुरू  ौ€से  ार्णावे  ाामरू  ागाध  यांचा  ाहिमा  ाोरू  ारिसा  ाोते  ाुजन  ो  ।11॥  ागी  याहूनी  ोष्=  ााहीा€ोणी  ा्रतिष्ठठ्ठत  ांद्र  ाूर्य  ाायु  ााप  ालेशेष  ा€ल्पवृक्ष  ।12॥  पमारहीत  ाो  ा्रम्हनिष्=  ात्य  ांकल्प  ााणीत  ाानवीजीवन  जळीत  ोजोमयी  ाद्गुरूदीप  ।13॥  ाद्गुरू  ामर्थाची  ााणी  ामृताहूनी  ाोड  ावणी  ाोललीासबोधातुनी  ाुरूकृपा  ानमोल  ी  ।14॥  ाादिअंती  ा€ल्पांती  ाजरामर  ाुरूकिर्ती  ोष्=त्व  ाुरूभक्ति  ांदिपके  ो€ली  ासे  ।15॥  ांदिपकासारखा  नि  स्वार्थ  ाक्तसखा  या  ा€लियुगी  निका  ा  ेखियला  ायनी  ।16॥ायाची  ेखुनि  ाुरूभक्ति  ारमेश्वर  ाोषले  चित्ति  ा्रत्यक्ष  ोउनि  ावनिवरती  ाकले  भे  ााळापूढ  ाी  ।17॥  ााळाांदिपका  ाुझी  ाुरूभक्ति  ेखोनि  ेव  र्षले  चित्ति  ाोषला  ासे  मापति  ार  ाावया  ाातला  ।18॥  हणे  ााळाांदिपका  धन्य  ाू  शिष्य  ेखा  ार  ााग  ाा  ााळका  ा्रसन्न  ााम्ही  ाुजवरी  ।19॥  ो  ा€ा  ाुझी  ानोकामना  वरीताूर्ण  ा€रण्या  वये  वयंभू  ाहेश्वर  ाुज  ाान्निध  ाातलो  ।20॥  ांदिपक  ाोले  ायाप्रति  हणे  ेवा  ागत्पति  ा€ा  ाो€ष्टले  ाजसाठठ्ठ  ौ€लासपति  विश्वंभरा  ।21॥मज  ा  ागे  ूजे  ा€ाही  नि  वार्थ  ाुरूसेवा  हावी  ाोच  ाोषविल  ावलाही  ाद्गुरू  ाामुचा  ाृ€पाळु  ।22॥  ाुरूसेवेतचि  ान  ाांनद  ाावे  ात्रंदिन  ाुरू  ांतोषताचि  ाुख  ाव्याहत  ााभते  ।23॥  ाुरूआज्ञा  शिरसावंद्य  ोची  ाामुचे  ा€र्तव्य  ाीवन  हाटी  ायाविणे  ाो  ा्रतिपाळक  ाामुचा  ।24॥  ारी  ार  ेणे  ााम्हासी  ाुसून  ोतो  ाद्गुरूशी  ाुख  हावे  यांचे  चित्ति  ेसा  ार  ााम्हा  ेई  ।25॥  ेकून  शिष्याचे  ाोल  ाहेश  ोले  विष्णुजवळ  ाारायणाशी  ा€रूनी  ामस्कार  ाृत्तांत  ा€थिते  ााहले  ।26॥  विस्मित  ोउनी  ाक्ष्मीपति  ोघे  ाूलोकाशी  ाोर  शिष्य  ीपकपुढ  ाी  ा्रगटती  विष्णु  ाहेश  ।27॥  ा€षिकेश  ाद्मनाभ  ौ€लासपति  गिरिजानाथ  ा्रसन्न  ोउनी  दिपका  ा€ाय  ादति  ो  ेका  ।28॥  ेके  ााळा  ांदिपका  ेखोनि  ाुझ्या  ाुरूभक्तिला  कनिष्=  नि:स्वार्थ  वामी  ाक्तिसेवा  ाुख  ।29॥  ाुझी  कनिष्=  ाक्ति  ाुरूसर्वस्व  ाा=शिी  ातुलनीय  ाशी  ाक्ति  ा्रल्हाद  ा्रुवासारखी  ।30॥  ाोर  ाोर  ा€षीमुनिंसी  ाहातपस्वी  ााधुजनांसी  ा  ााधिले  ाायासे  ा€रूनि  ााध्य  ाुवा  ो  ो€ले  ।31॥  या  ा€ारणे  ााम्ही  ांतोंषलो  ाक्तीकारणे  नेहाळा  ाू  ौ€वल्यदानी  ार  ोण्या  ाोय  ासशी  ।32॥  शिष्य  ाोले  ायालागी  ाूसुन  ोतो  ाुरूदेवाशी  ामन  हावया  ाुरूव्याधिचे  ार  ाावा  ाचि  ेवा  ।33॥ोवुनि  ााळ  वरेसी  ा्रर्थिता  ााला  ाद्गुरूशी  ााला  ाृत्तान्त  ा€थियेला  ा  ाागता  ााम्ही  ारासी  ।34॥  ाुरूदेवा  ागुणराशी  ा्रम्हाविष्णु  ौ€लासपति  वंये  वयंभू  ा्रसन्नचित्ती  ार  ाावया  सिध्द  ााले  ।35॥ऐसे  ााझे  ाानसी  हावया  याधि  ामनासी  ेसा  ार  ााम्हासी  वरित  मिळावा  ाुरूदेवा  ।36॥  ौ  ादले  ागुणराशि  ेक  ााळा  वरेसी  याधी  ामन  ारासी  ाागू  ाये  ााळा  े  ।37॥  ाुरूदेव  विस्तारेशी  ा€थिते  ााले  शिष्यासी  ा€र्मभोग  ाोगण्यासी  ाापणचि  सिध्द  ासावे  ।38॥  ाुकवावया  ान्ममरण  ाोग  ांपवावे  ाोगुन  ाृ€तकर्माचे  निर्मूलन।  ाुरूकृपेने  ोत  ासे  ।39॥  ाुरूकृपेची  ाुलना  ौ€से  ा€वणे  ा€रावी  ााणा  ाुरू  ा€ोपलीया  ाानवा  ा€ोण  ाोषवी  ााळा  े  ।40॥ र् श  ा€ोपलीया  ाांगा  ाुरू  ाांतवी  निजांगा  :शाप  ेऊनिया  क्षित  ासे  शिष्यासी  ।41॥  हणुनि  ाांगतो  ेक  ाा  ाुरूवाक्यी  ारंवसा  नितांत  ावित्र  ाध्दा  ाुरूवचनी  ासावी  ।42॥  शिष्याचा  ााहण्या  ाक्तिभाव  ाुरूने  ााणिला  ााविर्भाव  ाु€ष्=रोगी  प  ारियेले  ााहुनि  शिष्याची  ारीक्षा  ।43॥  ाुरू  ांतोषोनि  ेखा  ााशिर्वादे  ाोलती  दिपका  ेक  शिष्या  ागुणा  किर्तिवंत  ाुझी  ोवा  ।44॥  ा€ाशीपुरी  चिरंजिवी  ानलोका  ाोषवी  ो  ाुझी  तुति  ााती  ावणी  ा=णी  ाुझी  किर्ती  ।45॥  ाीवनी  ो  ाुखी  ोती  च्छित  ा€ामना  ाोगुनी  ेसी  ाुरूची  ाृ€पाशक्ति  ाूळ  पा  ा्रकट  विले  ।46॥  ाुरूपरतोनि  ाापल्या  ाामा  दिपक  ाहीला  ा€ाशीग्रामा  ाुरूआज्ञेचे  ा€रूनी  ाालन  ाुरूसेवा  ाृत्ती  ाहत  ासे  ।47॥  नि:स्वार्थ  ाक्तिचा  ाार्ग  ावण्या  ोर्अ  चिरंजीव  ांदिपक  ााळ  ाो  ा€ीर्तिवंत  ागी  ााला  ।48॥  दिपकाप्रति  ा€रावी  ाक्ति  ांती  मिळविण्या  ाद्गती  ाुकेल  ान्ममृत्यू  निश्चिती  ेवा  ारंवसा  ाुजन  ो  ।49॥  ादगुरू  ाृ€पेचा  ाागर  ादगुरू  ानाचा  दार  ादगुरू  ाांतिचा  ारिमळ  ाात्मानंद  ेईल  ।50॥  ांदिपकाची  ाध्दाभक्ति  ाविस्तर  ा€थियेली  ाुरूचरित्री  ााचरण  ासावे  ौसेचि  ाार्थक  ोण्या  ाीवाचे  ।51॥  ति  ाीरामगुरूचरित्र  परिसा  साळ  क्षुदंड  विनवी  ासी  ाखंड  चत्वारिंशाा  याय  ाोड  ा  ।52॥ 

      ॥श्रीगुरूदत्तात्रेयार्पणमस्तु  ॥ 
॥अ  व  धू  त  चिं  त  न  श्री  गु  रू  दे  व  द  त्त  ॥ 

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