श्री गणेशदत्तगुरूभ्यो नम :
श्रीरामगुरू चरित्र
॥ अध्याय 9 वा ॥
॥ श्री गणेशाय नम:॥ श्री सरस्वत्यै नम: । श्रीगुरूभ्यो नम: । करिते वंदन तुम्हाप्रती। श्री नृसिंहसरस्वती यती। यश द्यावे लिखाणाप्रत। हीच विनवणी गुरूराया॥ 1 ॥ कलियुगी भक्तत्राता। त्रयमुर्ति जगत्पिता। अनेक रूपे धरूनी जगता। उध्दरी भक्ता अजुनही॥ 2 ॥ याची कथा परम सुरस। ऐका श्रोते सावकाश। गुरूचरणी स्थिरचित्त। =ेवा भक्तिभावाने॥ 3 ॥ सत्यस्वरूप जाणण्या। दिव्यद्दष्टी पाहिजे प्राण्या। ती योग्यता प्राप्त होण्या। शुध्दि भक्तिमार्ग हा॥ 4 ॥ भक्तिभावे निरंतरी। राहे प्राण्या भुवरी। जगदोध्दारक सद्गुरू। रक्षिती भक्ता निशिदिनी॥ 5 ॥ त्रयमुर्ती दत्तोपासक। नृसिंह सरस्वतींचे प्रियभक्त। श्री पांडे नामांकित। वसती अकोले ग्रामात॥ 6 ॥ नोकरी शिक्षणखात्यात। श्रीरामराया समवेत। ऐसा नित्य सहवास। परी ओळख पटेचिना ॥ 7 ॥ श्रीराम परम दयाळू। गुप्तरूपे भक्तांचा प्रतिपाळु। क्षणोक्षणी करिती निर्मलु। परी थांग कोणा लागेना॥ 8 ॥ ऐका श्रोते सावकाश। जन सुखाची धरिती आस। नवससायास सद्गुरूस। साकंडे पडे भक्ताचे॥ 9 ॥ प्रपंचमार्गी श्री पांडे गृहस्थ। संकट आले बिकट। आराधिले गुरूरायाप्रत। कळकळीने एकचित्ते॥ 10 ॥ स्मर्तृगामी जया म्हणती। भक्तांच्या जो वसे चित्ती। ते श्रीगुरूपाद यती। भक्तरक्षणा सदा शुध्द॥ 11 ॥ संकट काळी पांडे यांनी। नवस केला गुरू चरणी। चंदन पादुका गाणगापुरी। अर्पु आम्ही स्वामीशी॥ 12 ॥ धाव धाव जगत्पती रक्षावे आम्हासी संकटी। द्रव उपजला गुरूचे चित्ती। सांभाळीले तयांशी॥ 13 ॥ अनवाणी गुरूमाऊली। धावत आली सत्वरी। रक्षिले भक्ता खरोखरी। संकट निरसन झाले हो॥ 14 ॥ प्रपंच गाढा अवजड। मायापाश त्याहूनी अवघड। विसरले पांडे सत्वर। बोललेला नवस॥ 15 ॥ प्रापंचिक अडचणी प्रबल। पांडे झाले हतबल। कितीएक दिवस लोटले। राहीले जाणे गाणगापूरी॥ 16 ॥ भक्तवत्सल सद्गुरूनाथा। शुध्द भक्तिची असे आस्था। द्रव उपजला गुरूचित्ता। ह्ष्ठंत देती पांडयाशी॥ 17 ॥ वदती नरसिंह सरस्वती। सत्यवचनी गुरूमूर्ति। अनवाणी आम्हाप्रंती। दिवस किती हिंडविता॥18॥ ज्या ज्या काळी केला धावा। आम्ही अनवाणी आलो तेव्हा। अजुनही तुम्हाला। आ=वण कशी नसे हो॥ 19 ॥ चतुर्थावतारी कलियुगी। मानवरूपे या भुवरी। गुप्तरूपे प्रपंचमार्गी। आम्ही अवतार घेतला॥20॥ येणे नको गाणगापुरी। आमचे वास्तव्य अकोला नगरी। रामचंद्र नामे या अवतारी। वसे कुळकर्णी यांचे घरी॥ 21 ॥ खुणगां= बांधा पदरी। शुध्द भाव =ेवा अंतरी। नवस फेडा तेथे सत्वरी। पावले आम्हा गाणगापुरी॥22॥ मना न आणावा विकल्प। आम्ही साक्षात नांदतो तेथे। स्वीकार करू पादुकांप्रत। नवसमुक्त तुम्हां करू॥ 23 ॥ श्रीगुरूंच्या आज्ञेप्रमाणे। चंदन पादुका प्रेमाने। स्वहस्ते करूनी पांडे यांनी। रामचरणी अर्पियल्या॥ 24 ॥ अति आनंद यतिवर्या। नृसिंह सरस्वती गुरू सदया। स्विकारी पादुका रामराया। भक्ता ॠणमुक्त केले असे॥ 25 ॥ म्हणुनी ऐका सृजन हो। गुरूस्वरूपा आ=वा हो। गुरूचरणी नम्र व्हा हो। गुरूवचनी स्थिर रहा हो॥ 26 ॥ गुरूच भक्ता रक्षीती। गुरूच भक्ता शांतविती। गुरूच भक्ता मुक्त करिती । गुरूमहिमा थोर हा ॥ 27 ॥ धन्य धन्य ही गुरूमाऊली। भक्तावरी कृपासाउली। अवतार कार्य भुवरी। गुप्तरूपे चालले॥28 ॥ अगणित होती चमत्कार। भ्रांतलोका निंरतर। धन्य अमोल अवतार। भक्तकामना पुरविती॥ 29 ॥ गोखले नामे दत्तभक्त। राहत होते नातुंचे सदनात। सदा स्मरती सद्गुरूनाथ सद्गुरूचरणी लीन ते॥ 30 ॥ त्यांची मनिषा पुर्ण करण्या। आज्ञा झाली रामराया। कटी पितांबर पिवळा। शाल घेवूनी निघाले॥ 31 ॥ गोखल्यांची होती मनिषा। सोवळे शाल खडावा देखा। ऐशा वेशात सद्गुरूनाथा। यावे सदनी भोजना॥ 32 ॥ भक्तप्रिय सद्गरूंना। आली भक्ताची करूणा। कामना त्यांची पुरविण्या। आले गोखले सदनी॥ 33 ॥ अतिआनंद गोखल्यांच्या मनी। धन्य कृतार्थ वाटले जीवनी। दत्तात्रेय अत्रिनंदन सदनी। पूजा केली शोडषोपचारी॥ 34 ॥ अष्टगंध अर्गजा गुलाल। अत्तर सुगंधित साचार। धूपदिप तांबुल। भक्तीभावे पुजीयले॥35॥ आनंद सदनी वर्तला। पंचपवान भोजना। संतुष्ट झाला योगिराणा। आशिर्वाद देऊनी शांतविले॥ 36 ॥ पुढे थोडेच दिवसात। बढती झाली नोकरीत। धनधान्य पुत्रांसहीत। गोखले संसारी सुखी झाले॥ 37 ॥ निष्काम भक्तीचे फळ जाणा। न करवे त्यांची तुलना। त्रयमुर्ति सद्गुरूंना। चिंता त्या भक्ताची॥ 38 ॥ यापुढील चमत्कार। पुढील अध्यायी सविस्तर। गुरूमाउली कथन करा। ऐसी प्रार्थना क्षणोक्षणी॥ 39 ॥ इति श्रीरामगुरूचरित्र। परिसा रसाळ इक्षुदंड। विनवी दासी अखंड। नवमो। ध्याय गोड हा॥ 40 ॥
॥श्रीगुरूदत्तात्रेयार्पणमस्तु ॥
॥अ व धू त चिं त न श्री गु रू दे व द त्त ॥
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