श्री रामदत्तगुरु चरित्र.....Http://ramdattaguru.org
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अनुभव 7

सौ.  कोऱ्हाळकर,  कोथरुड,  पुणे 

श्री.  सद्गुरुंच्या  दर्शनाचा  योग  75  साली  माठया  बहीणीकडे  (सौ.  शिला  देशमुख)  आला.  तेव्हापासून  श्री.  गुरुंनी  दिलेल्या  अंगा.याचा  प्रभाव  जाणवू  लागाला.  1976  साली  तर  त्याची  चांगलीच  प्रचिती  आली.  मोठा  मुलगा  तेव्हा  जेमतेम  10  महिन्याचा  होता  त्याला  घेऊन  मी  माहेरी  (परतवाडा)  गेली  होती.  2-3  दिवसांनीच  माझी  तब्येत  बिघडली.  खाल्लेले  काहिही  पचत  नव्हते,  झोप  लागत  नव्हती.  त्यातच  मुलगा  लहान,  त्यामुळे  त्याचीही  भूक  भागवावी  लागत  होती.  त्यामुळे  शरीरातील  शक्ती  दिवसागणिक  कमी  होत  चालली  होती.  शेवटी  भाच्याला  अकोल्याला  पाठवून  श्री.  गुरुमहाराजांना  तब्येतीबद्यल  सांगून  अंगारा  आणण्यास  सांगितले.  अंगारा  सुरु  केल्यावर  2-3  दिवसांनी  आतुन  कोणतीतरी  शक्ती  बाहेर  आल्यासारखी  जाणवली  मोठया  बहिणीने  लगेचच  श्री.  गुरुंचे  स्मरण  करुन  तीर्थ  शिंपडले  व  अकोल्याला  श्री.  गुरुंकडे  जाण्यास  सांगितले.  त्याप्रमाणे  मी  भाऊ,बहिणीसह  स्पेशल  गाडी  करुन  अकोल्याला  आली  व  सरळ  श्री.  गुरुमहाराजांकडे  गेलो.  तेथे  श्री.  गुरुमहाराज  म्हणाले  की,  तुम्हाला  देवीच्या  नावावर  कोणीतरी  केले  आहे.  त  ते  आता  जाग/त  झाले  आहे.  तुम्ही  आज  येथे  आलात  ते  बरे  झाले  कारण  दुस.या  दिवशी  अमावस्या  व  सुर्यग्रहण  होते  व  ते  मला  कठीण  होते  श्री.  सद्गुरु  कृपेनेच  मी  त्या  जीवघेण्या  प्रसंगातून  वाचली.

त्या  दिवसापासून  श्री.  सद्गुरुंचा  आशिर्वाद  माझ्या  पाठिशी  माऊलीसारखा  आहे.  आजही  कोणतेही  कार्य  असो,  प्रवास  असो  श्री.  गुरुकृपेमुळे  व्यवस्थित  पार  पाडतात.

असाच  एक  गुरुकृपेची  प्रचिती  आणणारा  प्रसंग  2001  साली  घडला.  मोठा  मुलगा  चि.  श्रीरंग  एका  कंपनीत  श्ठ  म्हणून  लागला.  कंपनी  चांगली  होती  पण  त्यासाठी  त्याला  नाशिकला  जावे  लागणार  होते.  तसा  तो  पुण्याला  चांगला  स्थायी  झाला  होता  तेव्हा  त्याने  महाराजांना  फोन  करुन  विचारले  की  मी  मी  नाशिकला  जाऊ  की  नाही  त्यावर  महाराजांनी  उत्तर  दिले  की  आई  वडीलांची  इच्छा  असेल  तर  जा.  माझी  इच्छा  नव्हतीच,  पण  कंपनी  चांगली  असल्यामुळे  त्याने  जाण्याचे  ठरविले.  तेथे  काम  करण्यासाठी  त्याला  गाडी  लागणार  असल्यामुळे  माझ्या  पतींनी  त्याला  नवीन  मोटरसायकल  घेवून  दिली.  तीच  गाडी  तो  चालवत  नाशिकला  घेवून  जाणार  होता.  तो  मोटरसायकल  चालवीणे  नुकताच  शिकला  होता.  त्यातच  पुणे  नाशिक  रस्ता  घाटाचा  व  दिवस  पावसाळयाचे  होते.  त्यामुळे  अशा  परिस्थितीत  त्याने  जावूच  नये  असे  मला  वाटत  होते.  पण  त्याने  ऐकले  नाही.  ज्यादिवशी  तो  निघणार  त्या  दिवशी  सकाळपासूनच  माझे  मन  अस्वस्थ  होते.  मनोमनी  सारखी  गुरुमहाराजांची  आळवधी  सरु  होती  की  त्याला  पुण्याला  राहू  द्या.  मी  श्री  औदुंबराची  नित्यनेमाची  पुजा  केली  व  प्रदक्षिणा  घालण्यास  सुरुवात  केली  पण  मनात  मात्र  सगळे  मुलाचेच  विचार,  तो  गेला  असेल  का  -  गाडी  नीट  चलवली  असेल  का  वगैरे.  पहिली  प्रदक्षिणा  घालतांनाच  एकदम  सदाफुलीच्या  झाडाजवळ  असलेल्या  खड्डयात  पाय  पडला  व  समोर  तोल  जावून  नाकए  तोंड  दतक्या  जोरदार  आपटले  की  नाक  फुटुन  जोरदार  रक्त  वाहायला  लागले.  मलातर  क्षणभर  काही  सुचेनाच  पण  तशीच  उठून  घरात  आली  आधी  अंगारा  घेतला  (अंगारा  मला  श्री  गुरुमहाराजांनी  1  महिना  अगोदरच  दिला  होता).  अंगारा  घेतला  तेव्हाच  महाराजांनी  मला  सांगितले  होते  की  हा  अंगारा  आधीच्या  आंगा.यात  मिसळू  नका.  तो  वेगळा  ठेवण्यास  सांगितले  होते  ते  का  हे  आज  कळले. 

त्या  दिवशी  रविवार  असल्यामुळे  जवळपासचे  सगळे  दवाखाने  बंद  होते  त्यामुळे  माझ्या  जवळचेच  औषध  घेतले.  पण  आश्चर्याची  गोष्ट  म्हणजे  नाकातून  एवढे  रक्त  गेलेले  असूनही  अंगा.यामुळे  व  गुरुमहाराजांच्या  कृपेने  मला  काहिच  अशक्तपणा  जाणवला  नाही.  डोळयाला  जखम  झली  असुनही  डोळा  वाचला.  अशाप्रकारे  गुरुमहाराजांच्या  कृपेने  पुन्हा  माझ्यावरील  संकट  टळलेच  पण  रात्री  आनंदाची  अजुन  एक  गोष्ट  कळली  की  मुलाचे  ज्दछद्भग्ह  नाशिक  ऐवजी  पुण्याला  झाले  आहे.  ते  ऐकून  आनंद  तर  झालाच  पण  गुरु  माऊली  कल्पव/क्षाची  सावली  असण्याचे  प्रकर्षाने  जाणवले.

गुरुमहाराजांच्या  कृपेची  प्रचिती  आणणारे  बरेच  प्रसंग  आहेत.  आम्ही  उभयंता  व  मुलांनी  अनुभवले  आहेत.  त्यामुळे  आमची  ही  द/ढ  श्रध्दा  आहे  कि  श्री  गुरु  महाराज  व  सौ.  कृपा  व  आशिर्वाद  आमच्या  पाठीशी  आहेत  म्हणुनच  आमचा  जीवनप्रवास  सुरळीत  सुरु  आहे.  त्यांचा  असाच  कृपाप्रसाद  तुम्हां  आम्हांला  लाभो  हिच  गुरु  चरणी  प्रार्थना

 

 

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