श्री रामदत्तगुरु चरित्र.....Http://ramdattaguru.org
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श्री  गणेशदत्तगुरूभ्यो  नम  :
श्रीरामगुरू  चरित्र 
  ॥  अध्याय 14  वा ॥

॥  श्री  गणेशाय  नम:॥  श्री  सरस्वत्यै  नम:।  श्रीगुरूभ्यो  नम:।  जय  जय  श्री  भवानीमहेशा।  उमापति  हिमाद्रीजामाता।  कर्पूरगौरा  शिवशंकरा  ॥  1  ॥  नमिते  तुम्हा  गिरीजावरा।  सर्पभूषणा  सतेजा।  भिाणी  तनया  रूद्रावतारा।  ग्रंथा  सहाय्य  करावे  ॥  2  ॥  ऐका  श्रोते  तुम्ही  चतुर  हो।  प्रसंग  घडला  एक  घोर  तो  ।  प्रवासी  ओढवला  दुर्धरहो  ।  त्याचे  वर्णन  परिसावे  ॥  3  ॥  प्रापंचिक  एक  दांपत्य।  प्रवास  करीत  पुत्रासहित।  पिशो  धरीले  पुत्रास।  न  आले  ते  ध्याना  ॥  4  ॥  विपरीत  करणी  नशिबाची।  मानवा  पडे  भ्रांत  त्याची।  भोग  भोगावे  लागती।  कर्मगतीनुसार  ॥  5  ॥  गुरूसत्ता  अगाध  थोर।  अथांग  आहे  कृपासागर।  शरणांगता  करी  भवपार।  चरण  धरीता  भक्तिभावे  ॥  6  ॥  वैद्यकीय  उपचार।  पुत्रासी  केले  साचार।  परी  गुण  न  येची  सत्वर।  हात  टेकीले  वैद्याने  ॥  7  ॥  निष्णात  सर्व  औषधोपचार।  परिक्षणाचे  सर्व  प्रकार।  पित्याने  केले  सत्वर।  परी  रोगनिदान  होईच  ना  ॥  8  ॥  ते  होते  विपरीत।  पिशा  भेडसावी  पुत्रास।  वैद्य  काहीच  न  जाणत।  दैवी  शक्तिच  जाणे  हो  ॥  9  ॥  प्रबळ  एक  पिशा।  उलटी  करवित  असे  पुत्रास।  प्राशन  करीत  असे  रक्तास।  संतुष्ट  होण्या  स्वयेचि  ॥  10  ॥  श्रीरामाचे  शिक्षक  एक।  होते  त्यांचे  परिचित।  ते  सुचविती  त्वरीत।  सहाय्य  घ्या  हो  सद्गुरूंचे  ॥  11  ॥  जय  जय  श्री  रामचंद्रा।  भवाब्धितारका  कृपासमुद्रा।  पैलतिरी  करा  मज  आता।  शरण  तुम्हा  त्रिवार  ॥12  ॥  ऐसा  धावा  करूनी।  पातले  त्वरीत  गुरूसदनी।  घट्ट  मिठठ्ठ  गुरूचरणी।  द्रव  आला  श्रीगुरूशी  ॥  13  ॥  रूग्णालयात  नेले  पुत्रापाशी।  दिव्यह्ष्टी  पडता  दत्तात्रयांची।  पिशा  बाधा  शीतल  साची।  दत्तसहवासे  झाली  असे  ॥  14  ॥  विभूती  देता  पुत्रासी।  आराम  पडला  त्वरेसी।  धीर  वाटला  जनकजननीसी।  दैवी  शक्ति  धन्य  जगी  ॥  15  ॥  विभूती  देता  पुत्रासी।  वदले  रामगुरू  पित्यासी।  श्रध्दा  =ेवूनी  चरणाशी।  औषधोपचार  करू  नये  ॥  16  ॥  परी  मानवी  मन  अस्थिर।  विास  न  बसे  सत्वर।  द्विधा  वृत्ति  अतिचंचल।  औषध  बंद  केले  नाही  ॥  17  ॥  औषध  देता  पुत्रासी।  व्यथा  वाढली  तात्काळी।  नेले  त्वरीत  गुरूपाशी।  क्षमायाचना  करिती  हो  ॥18  ॥  पुन्हा  विभूती  देताची।  बाधा  जातसे  सत्वरी।  हर्ष  वाटे  पित्याशी।  चरणी  लीन  सद्गुरूंच्या  ॥  19  ॥  गुरू  वरदहस्त  ज्यांचे  शिरी।  काय  उणे  त्या  भूवरी।  सरस्वती  प्रसवीस  होऊनी।  विद्याधन  प्राप्ती  झाली  ॥  20  ॥  गंडांतर  दूर  झाले।  पिशा  बाधेतून  मुक्त  केले।  जनक  जननी  कृतार्थ  झाले।  गुरूकृपा  छाया  शिरी  ॥  21  ॥  सद्गुरू  केवळ  विद्येचे  माहेर।  भक्तजनांचे  जिव्हार।  लावण्यरत्न  भांडार।  सरस्वती  मातेचे  भूवर  ॥  22  ॥  आता  प्रार्थिते  गुरू  सदया।  कन्येवरी  असू  दे  माया।  अंत  बघू  नको  सदया।  यथायोग्य  मति  देई  ॥  23  ॥  तुजवाचोनी  श्रेष्=  कोण  जगी।  अल्पमति  दु:ख  भोगी।  मानवप्राणी  अभागी।  तारक  तू  भक्ता  कलियुगी  ॥  24  ॥  कोठठ्ठल  कोण  रहिवासी।  को=ुनी  प्राणी  जन्मा  येती।  दैवयोग  एकत्र  येती।  कर्मगती  प्रमाणे  ॥  25  ॥  आजवरी  तुम्ही  श्रोते  सृजन।  श्रवण  केले  पिशा  वर्णन।  याचा  अनुभव  भक्तालागून।  कैसा  आला  परिसावे  ॥  26  ॥  ह्ढ  भक्ति  श्रध्देविण।  न  दिसती  हो  गुरूचरण।  सहजपणे  गुरूवर।  भक्तजना  सांभाळी  ॥  27  ॥  गुरू  दत्तात्रेय  त्रिगुणातीत।  परब्रम्हा  स्वरूप  सत्य।  त्याची  सत्ता  जगी  अगाध।  वर्णन  कैसे  करावे  ॥  28  ॥  निमित्तमात्र  मानवा  =ेवूनी।  खेळ  खेळतो  गुप्त  राहूनी।  बोल  न  =ेवी  आपणावरी।  कर्मगती  श्रेष्=  असे  ॥  29  ॥  पूर्व  पुण्याईचे  सामर्थ्य।  रक्षण  करिती  गुरूदेव।  तरण्या  हा  भवपाश।  सद्गुरू  तारिती  भक्तांस  ॥30  ॥  याचा  सकल  वृत्तान्त।  परिसा  श्रोते  सावचित्त।  कैसे  रक्षिले  प्रिय  भक्त।  पिशाास  मुक्त  केले  ॥  31  ॥  श्रीकांत  नामे  दत्तोपासक।  नोकरीनिमित्त  सावनेरात।  करीत  असता  रात्रपाळीस।  प्रसंग  दुर्धर  ओढवला  ॥  32  ॥  कीर्र  निशा  समय  घोर।  दोनचा  समय  अंधार  थोर।  स्वैर  भ्रमती  निशाचर।  झपाटले  पिशााने  ॥  33  ॥  पिशा  होते  पुण्यवान।  बोले  मुक्तिकाळ  जवळी  जाण।  अडीच  वर्षे  यातनास।  कुडीस  भोगणे  राहिले  ॥  34  ॥  त्रयमुर्तिची  उपासना।  रक्षण्या  धावली  त्या  क्षणा।  पुर्वपुण्याई  थोर  जाणा।  प्राण  वाचले  ते  क्षणा  ॥  35  ॥  घरात  दोघेचि  पतिपत्नी।  वडिल  आप्त  नाही  कोणी।  रजस्वला:  होती  कामिनी।  काय  करावे  न  कळे  तिज  ॥  36  ॥  रात्र  होता  भयंकर।  जीवा  वाटे  भयथोर।  पति  म्हणे  कोणी  घोर।  मानगुटी  धरीतो  माझी  ॥  37  ॥  न  लगे  पा=  शय्येस।  भयभीत  जीव  सत्य।  चिंताक्रांत  दोघेही।  मार्ग  उभयता  सुचेना  ॥  38  ॥  लोटता  दोन-तीन  दिवस।  घरमालके  बोलाविले  मांत्रिकास।  मांत्रिक  झाला  आश्चर्यचकीत।  प्राण  वाचला  म्हणून  ॥  39  ॥  मांत्रिक  वदला  सत्य।  हे  आहे  जिंद  खचित।  आरती  उतारिता  पिशा  चास।  आडवे  वारे  झोंबले  ॥  40  ॥  कर्मभोग  संपता  त्वरीत।  बदली  झाली  अकोल्यास।  सवे  घेउनी  पिशाास।  कामावरी  रूजू  झाले  ॥  41  ॥  योगायोग  आला  घडून।  भेटले  तया  सद्गुरूचरण।  निमित्तमात्र  झाले  जाण।  पूर्वजन्मीचे  ॠणानुबंध  ॥42  ॥  गतजन्मीची  प्रिय  भगिनी।  भेटली  त्वरीत  तया  कारणी।  पत्नी  चिंताक्रांत  सदनी।  वदली  हकीकत  सर्व  तिशी  ॥  43  ॥  नेले  तियेने  गुरूसदनी।  प्रश्न  केला  सद्गुरूलागुनी।  त्रिकालज्ञ  त्रयमुर्तिनी।  सांगता  केली  प्रश्नाची  ॥44  ॥  बोलाविले  दुसरे  दिनी  ।  उपाय  पिशा  निघण्याझणी।  कथन  करीते  झाले  हो।  गुरूराज  त्रिकालज्ञ  यती  ॥  45  ॥  ते  वेळी  साविीसध्यात।  त्रयमुर्ति  साक्षात।  पिशा  थरथरू  लागले  कुडीत।  भयभीत  जीव  झाला  ॥  46  ॥  पहा  म्हणे  सद्गुरूनाथा।  ऐसेचि  मज  नित्य  होता।  भय  चित्ता  वाटते  हो।  त्रयमुर्ति  तुम्हीच  तारक  हो  ॥  47  ॥  म्हणे  शांत  बसा  ये  समयी।  चिंता  न  करावी  काही  ।  उपाय  कथिला  ते  समयी।  लिहुन  देते  झाले  ॥  48  ॥  हळद  ज्ञाुंच्कू  अक्षता।  काजळ  गुलाल  शेंदुर  देखा।  दिप  लावा  मध्यभागी  सुरेख  आणि  काही।  पुजासाहित्य  देखा  ॥  49  ॥  उतारा  कथीला  पत्नीस  जाणा।  श्रवण  केले  गुरूवचना।  नम्र  होउनी  वदली  जाणा  परवस्तीत  आम्ही  याक्षणी  ॥  50  ॥  ओळखीचे  नाही  कोणी।  घरात  आम्ही  पतिपत्नी।  वडिल  मंडळी  नाही  कोणी।  द्रव  आला  गुरूमाउली  लागुनी  ॥  51  ॥  विभूती  दिधली  त्वरीत।  सेवा  कथिली  औंदुबराची  सत्य।  दुधपाणी  घालुनी  त्यास।  सात  दिवस  सेवा  करी  ॥  52  ॥  ते  दिवसापासुन।  पिशा  गेले  निघुन।  निर्दोष  झाला  प्राण।  गुरूसेवा  करावया  ॥  53  ॥  अर्पिला  देह  गुरूसेवेस।  गुरूकृपा  अमोल  खास।  काय  महती  वर्णमी।  अगाध  असे  गुरूसत्ता  ॥  54  ॥  गुरूकृपा  ज्याचे  शिरी।  काय  उणे  त्या  भूवरी।  आनंदी  आनंद  जीवनभरी।  तीन  भक्त  मंडळी  ॥  55  ॥थोर  किती  हा  नरजन्म।  लाभती  येथे  सर्व  साधन।  जीवनमुक्ति  गुरूचरण।  या  जन्मीच  भेटती  ॥  56  ॥  पूर्वजन्मीचे  सुकृत  पदरी।  सत्कर्माची  जोड  त्या  खरी।  सद्भावना  सात्विक  वृत्ती।  भेटती  तया  त्रैमुर्ति  सत्वरी  ॥57  ॥  इति  श्रीरामगुरूचरित्र।  परिसा  रसाळ  इक्षुदंड।  विनवी  दासी  अखंड।  चतुर्दशो  ।  ध्याय  गोड  हा  ॥  ॥       

॥श्रीगुरूदत्तात्रेयार्पणमस्तु  ॥ 
॥अ  व  धू  त  चिं  त  न  श्री  गु  रू  दे  व  द  त्त  ॥ 

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